तुम तो
आसमान के परे ही
कहीं जाकर और छिपकर बैठ
गये हो
उतर आओ अब नीचे कि
सिर आसमान की तरफ उठाये उठाये
मेरी गर्दन दुख गई है
मेरे शरीर के रोम रोम में
कंपन है
हृदय एक सूखे पत्ते सा कांप रहा है
मन के धरातल में
तीव्र गति से हो रही हलचल है
तुम्हारी याद बहुत सताती है
हर पल आंसू भर भरकर
रुलाती है
जमीन पर उतर आओ
एक बादल के तैरते हुए टुकड़े से
ही कहीं तुम कि
तुम्हें अपने आंचल में भर लूं
और भीग जाऊं
तुम्हारी देह की खुशबू में।