बारिश बरस चुकी है
सूखी थी जमीन
उसे गीला कर चुकी है
आसमान था भरा हुआ
बादलों से
उसे खाली कर चुकी है
तुम थी बिना बात ही
थोड़ी सी मायूस
थोड़ी सी खामोश
थोड़ी सी परेशान
मौसम को खुशगवार बना
तुम्हारे को भी खुश कर चली है
बारिश की एक बूंद भी अब
आसमान की छत से नहीं टपक रही
अपने सिर पर तना हुआ
छाता बंद कर लो
अपने हाथों को थोड़ा आराम दो
नरम हवाओं को जरा
अपनी जुल्फों को सहलाने का अवसर दो
पेड़ के पत्तों से छाते पर
पड़ रही एक दो बारिश की बूंदों को
पड़ जाने दो अपने रुखसार पर
एक फूल सी खिल उठोगी
नहीं मुरझाओगी कहीं से तुम।