घर है पर
उसमें कोई रहने वाला नहीं
कुर्सी है पर
उस पर कोई बैठने वाला नहीं
परिंदे भी रुख नहीं करते
अब तो इस घर का
इस कदर एक जले हुए जंगल सा
उजाड़ पड़ा है यह
पत्थर का बना है
पत्थर दिल भी है शायद
किसी सूखी लकड़ी सा बेजान है
वक्त का कोई मारा है शायद
चरमरा जायेगा जल्द ही
इसका अस्तित्व भी कहीं
पेड़ से झड़ रहे पत्तों की तरह
बिखर जायेगा इसका गुरुर
पानी में डूब रही
इसकी परछाई की तरह।