यह बात तो पूर्णतया सही है कि
रात्रि के तीसरे प्रहर
जब आंखों में नींद भरने लगती है तो
किताब में लिखे शब्द धुंधले से
दिखाई पड़ने लगते हैं
मेज पर रखी मोमबत्ती को
बुझाकर
रात्रि के चांद को अलविदा कहकर
सोने का समय
आखिरकार आ ही जाता है
भोर होती है
नदी किनारे ठंडी हवा भी
चलती है
आकाश में पंछी उड़ते हैं
मन में शांति की लहर की
गति नियंत्रण में होती है
मेरी अंगुलियों में सोने की
अंगूठी पर पड़ती सूर्य की
किरणों की चौंध मेरे
चेहरे पर पड़ती है और
उसे एक निर्मल गंगा के
पवित्र धार के उजाले सी ही
भर देती है
कल की कहानी
हर नई सुबह के साथ पूर्ण हो
जाती है
आज की कहानी
बिस्तर छोड़
अंगड़ाई लेकर
जरा उठकर तो देखूं कि
आगे किस तरह से
एक चुनर सी
सरक सरककर
किसी अंजान दिशा की तरफ
बहती हुई जाती है।