इधर से वार
उधर से वार
दोनों तरफ से
कोई न सिर झुकाने को
न समर्पण करने को
न समझौता करने को
न बातचीत करने को
न हारने को था तैयार
लड़ाई लम्बी थी
खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी
सब कुछ तबाह कर रही थी
कितने घर
कितने परिवार
कितने व्यवसाय
कितनी जिन्दगियां
सब कुछ बर्बाद कर रही थी
सब कुछ खत्म होने की कगार पर था लेकिन
यह युद्ध का सिलसिला थम नहीं रहा था
कोई झुकने को राजी नहीं था
कुछ बचना ही नहीं था तो
हासिल क्या करना चाहते थे
दोनों पक्ष
क्या जीत का औचित्य था जब
देखने को कुछ रह ही नहीं जाना था
सब कुछ उजड़ जाना था
सब कुछ वीरान एक जंगल सा
मिट्टी में मिल जाना था
सोने की लंका सा था
यह मुल्क
सोने की डाल पर सोने की
चिड़िया बसेरा करती थी
सब राख कर दिया
युद्ध का मैदान
एक कब्रिस्तान बन गया था
अनगिनत लाशें बिखरी पड़ी थी चारों तरफ
मुल्क खाली हो गया
हर शहर उसका खाली हो गया
हर घर खाली हो गया
हर सड़क खाली हो गई
हर कोना खाली हो गया
एक अंतिम सैनिक न जाने
कैसे बच गया
वह अकेला अब जीकर
क्या करे
इस जीत का जश्न भी
किसके साथ और
आखिर किस लिये मनाये
उसके दिमाग ने काम करना
बंद कर दिया
वह पागल हो गया
उसका दिल भी आखिरकार खाली हो गया।