रेगिस्तान की रेत
आसमान का सूरज
एक मुसाफिर सा चलता जो
ऊंटों का कारवां लेकर
नागफनी के कांटे पैर में चुभते तो
रेत के कण शीतलता प्रदान करते
कभी उतार, कभी चढ़ाव
कभी रंग ढलते,
कभी खिलते
कभी मन में सूरज प्रकाशित
होता,
कभी हृदय की पोखर में
खिला कंवल मुरझा जाता
यह जीवन तो कभी
बेड़ियों में बंधा तो
कभी आसमान की
खुली हवाओं में
एक स्वच्छंद पंछी सा विचरता
ऐसे ही बीत जाता
छोटे-छोटे मुकाम हासिल करता
पड़ाव दर पड़ाव एक लंबी यात्रा की
मंजिल तय करता।