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ईश्वर

ईश्वर

तुम कहां हो

मैं तुमसे मिलने कहां आऊं

तुमसे मिलकर मुझे क्या मिलेगा

मैं तुमसे गर न मिलूं तो क्या

तुम मेरा अहित करोगे

हे ईश्वर

तुम तो सर्व ज्ञानी हो

इतना तो जानते होंगे कि

जब तुम मुझे अपने घर का

पता नहीं बताते तो

मैं तुम्हारे द्वार तक

कैसे आऊं

हंसते होंगे जब देखते होंगे

तुम मुझे मंदिर जाते

तुम्हारी आराधना के लिए

सच में प्रभु

मैं यह भूल जाती हूं कि

तुम तो कण कण में व्याप्त

हो तो फिर

तुम्हारी स्तुति के लिए यह

आडंबर क्यों

तुम तो अपने भक्तों से

बस इतना भर चाहते हो कि

वह मानव सेवा करें

जन जन की सेवा करें

हर प्राणी की सेवा करें

कोई मनुष्य इसे अपने जीवन में

अंश मात्र भी कर पाये तो

तुम प्रसन्न होंगे

उसे अपने हाथों से

प्रसाद दोगे और

शायद फिर अपने साक्षात

दर्शन भी।