आसमान में मेघा छाये
छम छम छम फिर बरस जाये
धरती की प्यास और
दिल में लगी आग को
यह बुझाये
सबको भीगोकर समा जाये जमीन में
कहीं गहरे
धीरे धीरे फिर न जाने कहां लुप्त हो जाये
न जाने कहां से आते यह बादल
आसमान से उतरते जमीन पर फिर
जमीन के भीतर कहीं समा जाते
यह प्रेम करते केवल बाह्य सतह तक नहीं बल्कि
भीतरी सतह तक पहुंचता हुआ
तन को मात्र स्पर्श नहीं करते
मन को भी कहीं गहरा छूते
इनकी हर एक बूंद बन जाती आत्माओं के केंद्रबिंदु जो
संचालित करते प्रेम की पदचापों को
बरसते सावन का गीत सुनाते
सुरमई संगीत की झंकार को झंकृत करते
पायल के घुंघरूओं का शोर मचाते
हर दिशा के कोने कोने में लहराते
सावन की छम छम बरसती सुर लहरियों से।