परिंदे तो आजाद ही होते हैं
खुले आसमान के लेकिन
पांव में जंजीरों का न होना भी
कई बार बड़ा घातक सिद्ध होता है
काली घटायें एक नाग सी डस
जाती हैं तो
बिजली की गर्जना दिल को
फाड़ डालती है
आसमान में कहीं पेड़ भी नहीं मिलते
पल दो पल सुस्ताने को
अपने साये भी साथ नहीं उड़ते
अपने गर्म जिस्म को छूती ठंडी हवाओं में
अकेलेपन का अहसास तो
तड़पा तड़पा कर मार डालता है
सांस लेना भी दूभर हो जाता है जब बढ़ती है
आसमान से जमीन की दूरियां
तन और मन एक लय नहीं रहता
एक हद से गुजरने पर भी
अक्सर देखा है मैंने कि
बढ़ जाती है दुश्वारियां।