मेरी पहली और
मेरी आखिरी ख्वाहिश हो
बस तुम
खुदा को करूं सजदा
उससे पहले हर सांस में
शुमार हो तुम
तुम हो कहीं नहीं पर
तुम्हें भुलाना है
नामुमकिन
तुम लौट आओ
मेरे ख्वाबों में कि
यह पहाड़ सी रात
कटती नहीं
बंद आंखों की
घुटती तन्हाइयों में
मेरी तो दिली तमन्ना थी कि
साथ जीयें
आप मरें पर
यह ख्वाहिश भी अधूरी रही
एक सपनों का जहां
तुम्हारी यादों का तो
बसा लिया है मैंने
घर के हर एक कोने में
शायद तुम कहीं से निकल
आओ और
मुझे कहो कि चलो
घर से निकलकर
सितारों के जहां में
मेरे साथ घूमने चलो।