आकाश की विशालता नापना मेरे लिए संभव नहीं


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मेरे घर की छत से

अपना सिर उठाकर

ऊपर की तरफ देखने पर

एक आकाश नजर आता है

मैं जहां जहां जाती हूं

यह मेरे साथ साथ चलता है

इसकी विशालता नापना

मेरे लिए संभव नहीं

मैं कहीं थककर पल दो

पल ठहर भी जाऊं पर

यह कहीं रुकता नहीं

थमता नहीं

न ही अपनी जगह से

एक इंच भी कहीं सरकता

यह बाहें खोलकर

अपने आशियाने में

हर किसी का स्वागत करता है

इसके घर में

हर कोई अपना बसेरा करता है

फिर चाहे वह धूप हो,

हवा हो, पानी हो,

बरसात हो, चांद की चांदनी हो,

बादल हो, परिंदे हो,

सितारे हों, दिलकश नजारे हों

और भी न जाने क्या क्या

जमीन पर खड़े होकर

इसकी गहराई, विशालता

और रहस्यों का पता लगाना

मेरे लिए सच में संभव नहीं।


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