घर की देहरी पर नहीं
इस दीवाली की रात
मैं एक दीप को
एक रंग बिरंगी कंदील में रखकर
एक लंबे बांस के एक सिरे से बांधकर आकाश के सितारों से मिलने के लिए जमीन से ऊपर की तरफ उठाऊंगी आकाशदीप की रोशनी दूर से ही देखकर न आकाश भटकेगा
न ही मैं जहां खड़ी
वह मेरी धरा, मेरी जमीन
आकाशदीप से मिलने इस दीपावली
प्रभु राम जी आयेंगे, सीता मैया आयेंगी,
हनुमान जी आयेंगे
गणेश जी, लक्ष्मी मां को भी संग लायेंगे
राम जी की एक दीयों के सितारों सी जगमगाती टिमटिमाती गुनगुनाती
इस संसार के जन-जन को आशीष बरसाती बारात आयेगी
हर घर को आकाशदीप की एक लड़ी में पिरोती सौगात आयेगी।