एक अद्भुत दृश्यावली,
आह, कितनी मनोरम आकाशगंगा !
आदिकाल से सृष्टि पटल पर है सृजित,
असंख्य तारावलियों की अनंत यात्रा,
सघन तिमिर से द्वन्दरत क्षितिज पर,
अनंतकाल से अनंतकाल की यात्रा,
समाहित जिसमें कोटि हृदय की अनंत स्मृतियाँ,
कभी विरह वेदना से व्याकुल करुण पुकार,
तो कभी मिलन की सुखद बयार,
कभी अनायास ही आकृतियाँ उकेरती उँगलियाँ,
तो कभी अस्तित्वहीन आकृतियों का त्यौहार,
तारकों पर अंकित असंख्य नेत्रों के असंख्य स्वप्न,
अनंतकाल तक जीवित हैं तारामालाओं पर,
युगों युगों से हर जीवात्मा से संवाद-रत,
अनंत कथाओं का अटल साक्षी, हे नभःशोभिनी !
यदि होता थोड़ा भी सम्भव,
तो बाँध लेता मेरा हृदय,
समस्त तारामंडल अपने अंचल में,
होने को आह्लादित अनंतकाल के लिए ।