तुम ही तत्व हो तुम ही सार हो
अपने जीवन का स्वयं तुम आधार हो
जब हर तरफ छा जाये तमस
तुम रोशिनी की किरण का वार हो
जब हृदय नयन खोल देखे स्वप्न
तुम्ही खुद करते स्वप्न साकार हो
खोजते हो जो किसी लौह पुरुष को
तुम ही अलौकिक अवतार हो
दीन दुखियों का हो दुःख भंजन
ऐसे जीवित तुम उपकार हो
कहाँ ढूँढ़ते हो बाहर उजाले को
जब तुम ही तोड़ सकते अंधकार हो
अपने अंदर झाँक कर देखो
तुम ही देव, तुम ही जयजयकार हो
ललिता वैतीश्वरन