मैं शहर के पास ही सटे हुए
एक गांव में जाती हूं
शहर के शोर, भीड़ भाड़ और
प्रदूषण से बचने के लिए
गांव की सड़क पर
इत्मीनान से अकेली चलती हूं
यहां कितनी शांति है
शुद्ध हवा पेड़ पौधों के फल,
फूल और पत्तियों की सुगंध लिए
एक मद्धिम गति की लय से बह रही है
यह मुझे थपेड़ों सी काट नहीं रही बल्कि
प्रेम से हौले हौले सहला रही है
गांव की सड़क अब कच्ची नहीं है
मिट्टी से पटी नहीं है
कहीं से गीली या दलदली नहीं है
यह बिना गड्ढों की है
चिकनी है
मेरे पांव इसपर फिसल रहे हैं
मैं इसपर चल रही हूं
भाग रही हूं
बीच बीच में नाच भी रही हूं
भूले भटके कोई
बैलगाड़ी या घोड़ा गाड़ी यहां
से निकल जाती है
उसे रोककर उसमें बैठकर
मैं उसकी सवारी का आनंद भी
उठा देती हूं
मेरा साथ देने कभी
कोई मोर नाचता हुआ
कभी कोई नील गाय
कभी कोई हिरण
कभी कोई बकरी
कभी कोई चिड़िया
फुदकती हुई, चलती हुई
या नाचती हुई
मेरे पास यह सब आ ही
जाते हैं
गांव की सड़क तो
हमें एक घर के पास
एक खेल का खुला मैदान सी
लगती है
यह अधिकतर खाली मिलती है
तो हम सब यहां आकर
तरह तरह की गतिविधियां करते हैं
गांव की सड़क हमारा
बाहें खोलकर स्वागत करती है और
हम सब भी इसे अपने घर के
एक सदस्य की तरह ही
अपनाते हैं और इससे
बहुत अच्छा और प्रेमपूर्ण व्यवहार
करते हैं।