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अनकहे एहसास

अनकहे एहसास तो

एक खरपतवार की तरह

किसी के मन मस्तिष्क के मैदान में,

खेतों की पगडंडियों पर,

जमीन पर

उगते ही रहते हैं

दिल चाहता है कि

इन्हें उखाड़कर कहीं दूर फेंक दो और

यह फिर से न उपजे

न किसी को परेशान करें

हसरतें पूरी न हों

ख्वाब अधूरे रहें

अनगिनत एहसासों की एक श्रृंखला सी

चलती रहे और

उसे सुनने वाला कोई न हो तो

यह एहसास दुखद होता है

इससे घुटन होती है

मन रोता है

एहसास तो एक ऐसा बादल है

जो मन के आकाश पर

उमड़ता ही रहता है

कभी बरसता नहीं

बेचैन होकर इधर उधर

भटकता रहता है

न आसमान उसका कभी होता

न ही कभी वह खुद का

न ही कभी वह अपने एहसासों को

किसी से कह पाता है

अपना दुख हल्का कर

खुद को खाली कर

भारी मन को हल्का कर

कहीं बरस पाता है

उसके एहसास अनकहे ही

रह जाते हैं।

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