in

अनकहा प्यार: डॉ. मल्लिका त्रिपाठी द्वारा रचित कविता

बारिश की रिमझिम फुहार, कुछ कहने को बेक़रार,
मन उड़ता पंछी सा, कहीं ना पाए करार।
वो दूर से देख कर नज़रों का झुक जाना,
बार बार उन्हीं रास्तो पर लौट कर आना।
एक झलक पाने की बेताबी,
मदहोशी ऐसी, जैसे कोई शराबी।
दिल को कहीं ना मिलता था सुकून,
प्यार का ऐसा चढ़ा था जुनून।
ख़्वाबों में, ख़यालों में,
एक ही तस्वीर थी मेरी आँखों में।
वो दिन भी क्या थे,जब दिल मचलता था,
आँखों से  मद  का प्याला सा छलकता था।
पर समाज की बेड़ियों ने बाँध रखा था मुझे,
एक काँटा सा कहीं चुभा था मन में।
दिल की गहराइयों में एक कश्मकश सी थी,
जिसके चलते, हसरतें मेरे दिल की बेज़ुबा ही रही।
एकतरफ़ा प्यार कहीं आँसुओ के समंदर में खो गया,
मेरा ‘अनकहा प्यार’ अस्तित्व में आने से पहले ही अस्तित्वविहीन हो गया।