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हासिल क्या

जिस जगह से चलती हूं

आगे की तरफ बढ़ती हूं

घूम फिर कर बार बार फिर वहीं क्यों पहुंच जाती हूं

इस जीवन का अंत कुछ कुछ इसकी शुरुआत जैसा ही है

आखिर में हुआ हासिल क्या

कुछ भी तो नहीं

फिर भी जीवन मिला है तो

इसे हंसकर चाहे तो रोकर

जीना तो पड़ता है।