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हँसते-हँसते: ऋषिका द्वारा रचित कविता

 हँसते हँसते अचानक आँखें नम हो जाती है
 जब किसी की याद चुपके से आ जाती है
शबनम का अंगारा दिला जाते है कुछ अहसास
 रंग बिरंगे मौसम करा जाते है अकेलेपन का आभास..
 सारी बातें जो दिल के किसी कोने में क़ैद थी
बेताब निगाहें अचानक से उसे ढूँढने लगती है
शब्दों की जंग उछल कर पन्नों में छप जाते है
अल्फ़ाज़ों की नदियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद बहने लगती है
 शिकायतों की मानो झड़ी सी लग जाती है
दिन के उजाले में भी रात का अँधेरा नजर आती है
 बारिश की बूँदों भी मुझपर तरस खाती है
तन्हाई भी मुझे घुट-घुट कर तड़पाती जाती है
 भारी भारी से मन हो जाता है कुछ यूँ मेरा
हल्की हल्की बातें कुछ बेगैरत लोगों की याद दिलाती है
 दिसम्बर की ठंड, जनवरी का सर्दी भी रास नहीं आती है
यादों की दास्ताँ हँसते हँसते कभी रुला जाती है..!!