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सूरज के प्रेम का हर सू फैला प्रकाश

सूरज नभ से दूर

कहीं चला गया लेकिन

अपनी प्रकाश किरणों के पुंज को

कहीं अपने पीछे ही

इस वायुमंडल में छोड़ गया

उसकी रोशनी भरी किरणों के जाल

इस कदर

इस कायनात के कण कण में

समाये हैं कि

युग युगांतर तक उनकी आभा

कहीं से कभी लेशमात्र के लिए भी कम न होगी

मुझे तो यह सूरज

अपने स्थान पर न होते हुए भी

अपने यथास्थान पर ही

विराजित दिखता है

अब आंख होते हुए भी

जो लोग अंधे हों और

उन्हें इसके प्रेम का हर सू फैला प्रकाश गर न दिखे तो

इसमें भला कोई क्या करे।