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सुबह जो सोकर उठी तो

सुबह जो सोकर

अपने बिस्तर से उठी तो

मेरे सिरहाने रखी मोमबत्ती जो

मैंने एक प्लेट पर

चिपका कर

अपने समीप ही रखी एक मेज पर

रखकर

माचिस की तीली से जलाई थी

वह पिंघलकर जैसे फैलकर

अपना आकार खोती हुई

प्लेट की सतह पर

बिखर चुकी थी

यह सब मैंने बीती रात इसलिए किया था क्योंकि

कमरे में अंधेरा करके

ऐसी हल्की सुनहरी रोशनी मुझे

आराम पहुंचाती है और

मुझे बिना किसी तनाव के नींद आ जाती है

खिड़की पर पड़ा पर्दा हटाया तो

पाया कि धूप मुझे ही छूने के लिए

जैसे मेरी खिड़की की ग्रिल पर बैठी मेरा

इंतजार कर रही थी

मेरा मन हुआ कि

सुबह की गुनगुनी धूप में

थोड़ा सा टहलकर आया जाये लेकिन

सुबह की चाय को पीकर ही

तरोताजा होकर

स्फूर्ति में भरकर फिर

पांव में जूते पहनकर

होठों पर किसी गीत को

गुनगुनाते हुए

लता दीदी का कोई पुराना

गाना गाते हुए

घर की देहरी से बाहर कदम

रखा ही जाये

टहलते टहलते निकल आई मैं तो

पास ही के जंगल में

बैठ गई एक पत्थर की शिला

पर

झरने की जल क्रीड़ा को

देखते हुए

थक गई थी पर

आकाश में उड़ते और

मेरे आसपास विचरते

पंछियों ने मुझे थकने ही कहां

दिया

एक पंछी जो फुदक रहा था

मेरे पास

मैंने उसे बुलाया

वह उड़ा नहीं और

फुदकता हुआ मेरे और पास आया

अपनी गोद में उठाकर

उसके पैरों को सहलाते हुए

अपने सीने से चिपकाते हुए

एक पास ही जमीन पर पड़े एक ताजे फूल को

मैंने एक गहने सा ही

उसके पंखों से भरी

काया के बीच फंसाकर

उसे पहनाया।