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सुनो ऐ बालक

सुनो ऐ बालक

मेरे छोटे से कृष्ण कन्हैया

जरा इधर तो आओ

लो मेरे हाथ में जो बांसुरी है

उसे तुम अपने नन्हें हाथों से पकड़ो और

अपने कोमल अधरों से लगाकर

कोई मनभावन प्रेम भरी रागिनी

कोई मधुर धुन

हम गोपियों

अपनी बाल सखा और सखियों

सम्पूर्ण श्रोतागण को सुनाओ

तुम सच में

भगवान का ही तो रूप हो

इस धरती पर

बाकी सब तो मिथ्या है

झूठ है

धर्म से परे है

एक तुम ही तो

पवित्र हो

सरल हो

निश्छल हो

तुम्हारे मन में कोई पाप नहीं

तुम एक पवित्र गंगा की धार हो

तुम एक सम्पूर्ण सृष्टि हो

कोई अपनी मन की आंखें

खोले तो

वह भगवान के साक्षात दर्शन

किसी भी बालक में कर सकता है

एक अबोध बालक  

मासूमियत से भरा

छल कपट रहित

भगवान का प्रसाद ही तो है

इसे प्रेम करो

यह अमृत है

इसे अमृत ही रहने दो

इसमें संसार रूपी कोई विष न भरो

यह भगवान का धरती पर

एक अवतार स्वरूप है

यह परम सत्य तुम

दुनिया के वासियों

समय रहते

स्वीकार करो।