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सबक

मेरा मन कर रहा

मुझसे यह सवाल

तेरा कल बेहतर था कि

आज या

होगा आने वाला कल सुनहरा

एकाएक मुझे कोई जवाब नहीं

सूझ रहा था

मेरे या किसी मनुष्य के दिल में

ऐसे सवाल अक्सर क्यों उठते रहते हैं

हम मानव जाति सरल, सहज और

प्राकृतिक रूप से व्यवहार करने में

सक्षम क्यों नहीं है

हम खुद को जटिल क्यों बनाते रहते हैं

इन बहती हवाओं से

इन पेड़ के हिलते पत्तों से

इन आगे की दिशा में बहती

नदियों से

इन पहाड़ से गिरते झरनों से

इन चहचहाते परिंदों,

इन खुशबू बिखेरती फिजाओं,

इन पीछे मुड़कर न देखती राहों से

इन बरसती बारिश की फुहारों से

इन कायनात के दिलकश नज़ारों से

इन पहाड़ियों पर ढकी

बर्फ की लहरियों से

इन फूलों से महकती क्यारियों से

कोई सबक क्यों नहीं लेते

क्यों नहीं तनावमुक्त होकर

हंसकर जीना सीख लेते इनसे

इन्हीं की तरह हम।