रिमझिम करता सावन आया,
संग, नव उमंग ,उल्लास लिये,
उमड़ – घुमड़, मतवारे बदरा,
ख़ुशियों की बौछार लिये,
मंद फुहार का कोमल स्पर्श,
रोम – रोम को सींच रहा,
मंत्र – मुग्ध , आनन्द मग्न,
हर प्राणी, स्वागत में झूम रहा ,
घनन-घनन जब ,बदरा बरसे,
कृषक का तप, पाता वरदान,
प्यासी वसुधा,लहलहा उठी
हरे- भरे हुए ,खेत खलिहान,
अमर्यादित, घनघोर सी वर्षा ,
जब रौद्र रूप धारण करती,
जाता उजड़ निर्धन का जीवन,
वज्र बन कर ,उन पर गिरती।
आओ !जीवनदायिनी बरखा ,
ख़ुशहाली का उपहार लिये,
सोंधी सुगन्ध , चहुँ हरियाली,
समृद्धि की मस्त फुहार लिये।