यह फूलों की वादियां हैं


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यह फूलों की वादियां हैं

खामोशी से महकती हुई

हवाओं के संग बहती हुई

हरे पत्तों की हरियाली में नहाती हुई 

रोशनी के अंबार को खुद के

पास कहीं बुलाती हुई

दूब की मखमली चादर पर

अपने नाजुक पैर पसारती हुई

अपने से अलग रंग रूप के

फूलों को भी अपने बीच

जगह देती हुई

माटी की सौंधी सौंधी सुगंध को

खुद की सुगंधित देह में

घोलती हुई

जिस किसी की यहां कमी है

उन सभी को

यहां आकर

इस महफिल को

और अधिक सजाने की

दावत देती हुई

बाहें फैलाकर

सारी कायनात का

अभिनंदन करती हुई

तितलियों, भंवरों,

चिड़ियों को भी

आमंत्रण देती हुई

एक प्रेम का राग

अलापती हुई लेकिन

एक गहन खामोशी

इख्तियार करते हुए।


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