यह दिल के मंदिर में


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यह दिल के मंदिर में

एक जलते हुए चिराग को

कभी कभार क्या हो जाता है

यह बिना हवा के

बिना पानी के

बिना किसी ठोस कारण

बुझने की कोशिश क्यों

करने लगता है

इसकी देखरेख की सारी जिम्मेदारी तो 

प्रभु ने ले रखी है

कोई आता भी नहीं

इस मंदिर के द्वार तो

मैं व्यर्थ चिंता क्यों करती हूं

भगवान की सत्ता पर

आंख मू्ंदकर विश्वास क्यों नहीं करती हूं 

प्रभु जब चाहेंगे तो यह बुझ भी

जायेगा पर

इस विषय को लेकर अपने

जीवन का बेशकीमती समय

बर्बाद क्यों करती हूं।


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