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यह जो एक मोम का दरिया है

इस कमरे के दरवाजे को

कभी खुलते नहीं देखा

इस कमरे की खिड़की पर पड़े पर्दे को

किसी को हटाते नहीं देखा

न जाने कितने सूरज उगे

न मालूम कितनी शामें ढली

एक लम्बा अरसा क्या

पूरा जीवन ही गुजर गया लेकिन

यह जो एक मोम का दरिया है

इसमें मैंने लाख आग लगा दी लेकिन

इसे न पिघलते

न हिलते डुलते

न बहते

न हंसते

न रोते देखा

देखा तो बस इसे हर गुजरते पल के साथ

एक पत्थर,

एक और कड़ा पत्थर बनते ही देखा।