मेरी नियति


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आकाश में

काले धुओं के साये हैं

एक प्रचंड अग्नि की लहर सी भी

चारों ओर फैली हुई है

रंग हैं पर धुंधले से

कहीं अपना रंग लिए

कहीं पराये से

कर्ज में डूबे

सब कुछ उधार लिए

खुद का जैसे कोई मकान नहीं

किसी के रहमों करम पर

गुजर बसर करते

एक किरायेदार से

यह जिंदगी कहां जा रही है

सागर की लहरों पर

हिचकोले खाती

एक छोटी सी नौका पर

सवार होकर

क्या मैं सारी उम्र

मंजिलों को तलाशता

इन आसमान के बादलों

के बेरंग बादलों सा

एक भटका हुआ मुसाफिर ही

रहूंगा

क्या यही रहेगी उम्र भर

मेरी नियति।


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