मन के पोखर में


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मन के पोखर में

जो एक पानी का भराव है

वह किसी के कंकड़ मारने से या

तार हिलाने से स्थिर से गतिमान हो जाता है

चलायमान हो जाता है

मचल उठता है

उसके भीतर दबे सोये अरमान जागृत हो

जाते हैं

वह फिर अपनी कल्पनाओं में नये रंग

भरने लगता है

उसके विचारों में भी कोई

स्थिरता नहीं है

वह गंभीर मुद्राएं धारण नहीं करता

जीवन को जीता है

उसके अंत के विषय में अधिक नहीं

सोचता

कई बार तो वह चाहता है कि

तमन्नाओं के तारों को झंकृत

करता रहे

आखिरी सांस तक उन्हें बजाता रहे

उनसे कुछ अपने मन सा ही

पाता रहे

ख्वाहिशों के पहाड़ पर चढ़ता

रहे

उम्र भर चढ़ता रहे

नये नये मुकाम हासिल कर

अपनी फतह का झंडा लहराता रहे

अपनी जीत का जश्न बनाता रहे

कई बार लेकिन यह सब भी लगता है

फिजूल

पहली या आखिरी

क्या तमन्ना करनी

एक सामान्य तरीके से

धीमी गति से जीवन व्यतीत

होता रहे

सबको खुद में समाहित कर

यह क्या कम है

यह अपने आप में एक बहुत बड़ी

उपलब्धि है

तमन्नाओं को अपने रास्ते से हटा

देते हैं और

खुलकर सांस लेते हैं  

एक ताजी हवा के झोंके को

खुद के भीतर भरते हैं और

खुश होकर इस छोटी सी

जीवन यात्रा को पूरा करते हैं।


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