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प्रेम: सरिता खुल्लर द्वारा रचित कविता

मैं वही हूँ सोच कर हंसती थी बातें प्यार की,
मानती थी झूठ है, सब बातें हैं बेकार की,
भूल कर अपना पराया, छोड़ घर संसार को,
प्रियतम के प्यार में जीना करता है दुशवार क्यों,
आह,जब से तुम को देखा सुधबुद्ध सब भूल गई,
स्वप्न में भी ढूँढती हूँ और जुदाई लगती शूल सी,
बांध लिया तुम ने मेरे मन को ऐसे मोहपाश में,
हिरणी सी खिंची आती हूँ मृगमरीचिका के जाल में,
दृश्य सब फ़ीके हैं तुम्हारी लावण्यमय छवि के सामने,
संवारा सलोना रूप ऐसा हृदय को लगा है लुभाने,
देख कर जिसको देखो मीरा सी दीवानी हो गई,
तर्क सारे भूल बैठी, मन के मधुर संगीत में खो गई,
जानती हूँ तुम भी डूबे हो आकंठ तक मेरे प्यार में,
कोई भाता है नहीं बिन मेरे तुम को इस संसार में,
आओ चल दें दूर जहां हमारे बीच ना बाधा रहे,
आलौकिक हमारा यह मिलन हो, प्रेम आधा ना रहे।