प्रेम पत्र
यूं तो जीवन भर
मिले बहुत लेकिन
किसी के प्रेम या
प्रेम पत्र ने मुझे
सच पूछें तो कभी
नाम को भी
अपनी ओर आकर्षित नहीं किया क्योंकि
इन प्रेम पत्रों पर लिखित
शब्दों में कोई प्रेम नहीं
कोई सच्चाई नहीं
कोई भाव नहीं
कोई अपनापन नहीं
कोई स्थायित्व नहीं था
प्रेम की एक झलक भी
कहीं आज तक नहीं दिखी
यह अलग बात है कि
अपना जीवन काटने के लिए
कोई किसी के क्षणिक या झूठे प्रेम को
स्वीकार कर
समझौता करता फिरे
मुझे प्रेम मिला तो
अपने भीतर ही कहीं मिला
इस बाहरी दुनिया में तो
एक क्षण को एक कण भी न मिला
खुद से या तो खुदा तक या
फिर अपने वालिदैन के पैरों की धूल
अपने माथे पर लगाकर
उनके हृदय पटल पर ही
मेरे लिए लिखा उनका प्रेम भरा पैगाम पढ़कर मिला।