प्यार बिना इजहार का


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गुलाब और कांटे

संग संग,

रहते बेशक हों

एक दूसरे से तंग तंग

एक दूसरे को गले लगाकर

मिलाये रखते पर अंग अंग

गुलाब की रंगत निराली

सजती उससे बाग की हर क्यारी

गुलाब की खुशबू अनोखी

सूंघकर इसको चढ़ जाती इश्क सी ही

एक खुमारी और बेहोशी

कांटे एक रखवाले से,

बाग के एक माली से

करते गुलाब के गुलशन की

हिफाजत

बदले में न मिलता

कोई उपहार

आपस में रहती दोनों के तकरार

फिर भी बिना इजहार का

कहीं तो बहुत गहरा है

दोनों में आपस का

दिल की गहराइयों सा

एक सच्चा प्यार।


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