in

दो दिलों के एक पावन मिलन में

सूरज को एक फूल सा उगने दो

फूलों को एक चंदनबन सा महकने 

दो पेड़ों के पत्तों को बहती हवाओं के साथ बहने दो

आसमान के रंगों को आज

जमीन पर बने फर्श पर

परछाइयों की एक चिलमन सा ही झिलमिलाने दो

अपनी देह की सुगंध को मुझमें समाने दो 

आंखों को बंद करो और

दो दिलों के एक पावन मिलन में

मन के दर्पण में प्रेम की छवियों को

उतर जाने दो

फूलों के गुलशन से लहक रहे

चारों ओर

मन के परिंदे चहक रहे

चारों ओर

दरख्तों पर फूल झूल रहे

गुलदस्ते में फूल सज रहे

दिलों के गुलशन

फूलों के अंबार से लद रहे

बिना कहे ही

दिल की कहानी

खामोश लबों से कह रहे।