मैं दयावान हूं
दया मुझमें बहुत है
मैं जितनी दूसरों की सेवा
करना चाहता हूं
न जाने क्यों पर
उतनी कर नहीं पाता
मैं पाता अधिक हूं लेकिन
देता कम हूं
मैं करने के समय
कई बार
न चाहते हुए भी पर
पीछे हट जाता हूं
न जाने किस बात से क्यों इतना कतराता हूं
अपने हाथ देने के लिए
खोलने को होता हूं पर
उन्हें वापस सिकोड़ लेता हूं
दया का कीड़ा
मेरे कण कण में
हर समय रेंगता ही रहता है
मुझे उकसाता है
उठाता है
उत्तेजित करता है कि
चल खड़ा हो जा
खुद को भूल जा और
दूसरों की सेवा में लग जा
उनकी सहायता कर
उनके जीवन में रोशनी भर
उन्हें उनकी अंगुली पकड़कर
उनके रास्ते पर चला और
मंजिल तक पहुंचा
मैं संकल्प उठाता हूं और
यह सब बहुतायत में करना
चाहता हूं लेकिन
फिर कहीं खुद से ही हार जाता हूं
निष्प्राण सा हो जाता हूं
थोड़ा बहुत कुछ करता हूं लेकिन
फिर कहीं बीच रास्ते
अपना धैर्य खो देता हूं
हे भगवान
तुझसे विनती करता हूं कि
मुझे दयावान बनाये रखना
दया का भाव मेरे हृदय से कभी
मत छीनना लेकिन
मुझे भी हौसले से भरते रहना
मेरी परिस्थितियां अनुकूल
बनाये रखना
मेरे में मानवता बनी रहे और
मैं हर किसी पर
दया करता रहूं
ऐसी मेरी दृष्टि,
कर्म और धर्म बनाना।