in

तेरी यादों का काफिला

एक दुल्हन की तरह

डोली में बिठाकर चाहे मेरी विदाई हो

अपनों से बिछड़ कर चाहे लाख मेरी रुसवाई हो

तन्हा भटकू्ं मैं दुनिया के रेगिस्तान में और 

मेरी जग हंसाई हो

मेरी इस जग के 

सूने तो कहीं भीड़भाड़ वाले रास्तों के बीच से होकर 

निकल रही हो शव यात्रा

मेरी आत्मा कैद हो मेरे जिस्म के लिबास में 

या हो इससे छूटी हुई

तेरी यादों का काफिला हर पल मेरे संग है

यह मेरे रोम रोम

तन मन

प्राण हों या निष्प्राण

जर्रे जर्रे में जज्ब है

मैं इसके रंग में हूं रंगी

नहीं हूं इसकी बौछारों से कहीं किसी कोने से 

एक क्षण को भी अछूती

यादों का काफिला जो नहीं तो मुझे 

जीने और न ही मरने की कोई अभिलाषा।