तस्वीर: सुमन दीक्षित द्वारा रचित कविता


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पुरातन पिटारे के सुनहरे पन्नों में सिमटी,
चित्राधार से खंगालते हसीन यादगार पलों में..
लबों पर उभरती चन्द मुस्कुराहटें लिए…
नैनो के समक्ष तस्वीर एक ऐसी हाथ आई…!
प्रियतम संग मासी बुआ मामी चाची और ताई,
दो भगिनी और दो भाई दे रहे हैं दिखाई…
इक्कीसवीं सदी भी तब नयी ही थी आई,
सदी के प्रथम वर्ष की हो रही थी अगुवाई…!
जुलाई का था महीना और घटाएँ भी थीं छाई…
गठबंधन का था दिन लजाती सी मैं कदम बढ़ाई..
संग ढेरों अरमान लिए विदाई की घड़ी भी आई…
कई अपनों की आँख लगी शायद लेकर अंगड़ाई!
ब्रह्म मुहूर्त की बेला थी चहुँ ओर जो छाई…
पर अँखियों से तो मेरे जैसे नींद ही गायब हुई..!
ख़्यालों में सहेजी बही ऐसी पुरज़ोर पुरवाई…
कल्पनाओं में खोई हुई सी मैं तनिक हर्षाई..!
आज यह क्या रचना गढ़ दी हौले से मैं मुस्कुराई..
तस्वीर ऐसी देख यह तुकबंदी मेरे मन बड़ी भाई,
जिसकी पंक्तियाँ मैं आज सुबह से ही लिख रई…
हटात पुकारा जैसे किसी ने,कहा मैंने,ठहरो आई!

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