तस्वीर: दीप्ति श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता


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तस्वीरें तो बोलती थीं, गुज़रे उन ज़मानो में
सजी दीवारों, सहेजी संदूकों, एलबम के ढेर पन्नों में

रंग भले हो उनका काला, धूमिल, सफेद सा
नज़रे ना हटती उनसे, आईना थीं जीवन का

दीमक व सीलन से हो गलता कागज़ पुराना
सच संजोए अब तक भीतर, नायाब वो खज़ाना

झलक जाए तनिक वो बचपन, जो दादा-दादी की गोद में
भीग उठता फिर से तन-मन, उन थपकी दुलार से

ढूंढ लाऊं वे पल सुंदर, उन सुनहरी यादों के
रंग भर दूं तस्वीरों में, ढेर जीवंत पलों के

बदला है रूप सारा,उन खिंचती तस्वीरों का
स्मार्टफोन में कैद, अब रंगीन चेहरों का

भावनाएं भी हैं नकली, वो मुस्कान कहां असली
भले अनगिनत उतारीं, हैं तस्वीरें रोज़ सारी

कैमरों ने बदला चोला, हर जेब हुई भारी
खोल गैलरी जो देखी, सिर्फ़ तस्वीरें थीं हमारी

निभा जाती थीं वो यादें,तमाम जिंदगी जैसे साथी
पौ फटते ही बेचैन अब ,मेमोरी कैसे करें ये खाली

याद रखना ऐ ज़माने, कभी उनको ना भुलाना
तस्वीरों में हैं जो बसते
अमिट खुशियों का थे बहाना
अमिट खुशियों का थे बहाना

 


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