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झुर्रियाँ

प्यारी नानी, कैसी हैं ये आड़ी तिरछी सी रेखाएँ

ढक लिया है जिन्होंने तुम्हारे चेहरे को

और तुम्हारी सारी काया को?

अरे मेरे लाडले…

ये आड़ी तिरछी रेखाएँ, सिर्फ़ रेखाएँ नहीं,

ये तो हैं चढ़ती उम्र की निशानियाँ, कहते हैं जिनको झुर्रियाँ!

नानी, क्या थी तुम सदा से ऐसी ही?

झुर्रियों में ढकी हुई सी?

क्या यूँ ही दिखती रही हो तुम हमेशा से… कुछ अजीब सी?

अरे नहीं मेरे प्यारे,

था मेरा चेहरा भी तेरे जैसा कभी

जिस पर खेलती थी चंचल आभा यहीं!

सुन मेरे लाडले, आ पास बैठ मेरे लाडले

इन झुर्रियों के पीछे छिपी है एक लम्बी कहानी

सुनना तुम जो चाहो, तो सुनाती हूँ आज, ज़ुबानी|

नहीं ये कहानी कुछ सालों की

ये तो कहानी है दशक दशकों की

कितने ही बरसते हुए सावनों की, कितने ही महकते हुए फागों की!

कब शुरू हुई, और कहाँ शुरू हुई

ये आज एक अनबूझी पहेली जैसी लगती हैं

नई चमकीली चमड़ी को, ये कुछ झूठी सी लगती हैं|

पर ये झूठी नहीं ज़रा भी…

ये तो जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई समेटे बैठी हैं

इनमें गुजरे ज़माने की सारी हक़ीक़तें छिपी रखी हैं|

देखोगे जो इन झुर्रियों को गौर से,

ये सारा इतिहास ओढ़े और कहती नज़र आएँगी

और तब इनमें उम्र की वो लम्बी दास्तान झकल आएगी|

जानोगे जो तुम इनको क़रीब से,

ये तज़ुर्बे की रईसियत से भरी कहानी कहती जाएँगी

दिलों की कुछ हक़ीक़त, तो कुछ फ़साना बुनती नज़र आएँगी|

छूकर देखना चाहो तो देख लो मेरे लाडले,

दिखती हों चाहे ये कितनी ही कठोर, पर असल में

इनकी नरमियत में, जीवन की कठोरता छिपी पाओगे|

इन झुर्रियों के पीछे छिपे उस मन को जो पढ़ पाओगे

तो अपनी संतानों के प्रति इनमें निरंतर बहती

प्रेम की रस धारा को पाओगे|

नहीं मेरे प्यारे! ये झुर्रियाँ मात्र आड़ी तिरछी लकीरें नहीं

ये तो उस गुज़रती पीढ़ी की कहानी हैं

जिनसे उदित हुई नई नूतन जवानी है!

  • यह कविता नानी और नाती के बीच एक प्यार भरे संवाद के रूप में लिखी गई है, जिसमें जीवन का सार छिपा हुआ है|