जल यात्रायें करती रहती हूं


0

मैं एक मछली हूं

जल के भीतर ही रहती हूं

यह जल ही मेरा घर है

एक बहुत विस्तृत इसका क्षेत्रफल है

जब जल में रहती हूं तो

जल यात्रायें तो करती ही रहती हूं

मैं बस तैरना जानती हूं

एक परिंदे की तरह

उड़ना नहीं जानती

कभी कभी जल की धाराओं के ऊपर

तैरते हुए

आसमान को छूने की

देखने की और

उसे जानने की तीव्र इच्छा होती है लेकिन

मेरी यह ख्वाहिश मेरे दायरे में ही

सिमटकर रह जाती है

मैं उड़ जो नहीं सकती  

मेरी यह कमजोरी मेरी इस

इच्छा पर अंकुश लगाती है

जल की यात्रा के दौरान

मैं तरह तरह के अनुभव बटोरती

रहती हूं और इनके साथ साथ सीप,

शंख, मोती आदि भी लेकिन

मेरा सबसे बड़ा अनुभव यह है कि

विशालता की भी एक हद है

जैसे कि जीवन की भी

एक निश्चित आयु

यह सब यात्रायें

मौत को गले लगाते ही

खत्म हो जाती हैं

मैं भी खत्म

मेरी यात्रायें समाप्त

मेरे अनुभवों की किताब बंद

मेरी जिंदगी की कहानी

पूर्ण

आखिरकार मेरे जीवन की यात्रा का भी अंत।


Like it? Share with your friends!

0

0 Comments

Choose A Format
Story
Formatted Text with Embeds and Visuals