चेहरा गुलाब सा: मनीषा अमोल द्वारा रचित कविता


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मदहोश निगाहें और चेहरा गुलाब सा
सिलें लब मगर,वार शब्दों के प्रहार सा
ये बेमिसाल ख़ूबसूरती!विरले ही नज़र आती
तारीफ़ करे ग़र कोई,कहीं ख़ता ना हो जाती

मन में उठ रहे उन्माद प्यार के बेशुमार
पर इज़हार-ए-मुहब्बत से कर रहा लिहाज़
चाहे हो चाँद या हो फिर आफ़ताब
सब हैं शर्माए हुए,उनकी सूरत से आज

हवा जब उनके गालों को धीमे से सहलाती
बेपरवाह सी लटें चेहरे पे झूल जातीं
उन्हीं से है जमाल-ए-हुस्न की एक परिभाषा
परवानों की फ़ितरत सी,मेरी दीवानी पिपासा

पहले ही उनमें है,क़यामत की नज़ाकत
न सजने की ज़रूरत,न संवरने की इजाज़त
ख़ामोश से भरे,मेरे दिल की ये इबादत
हो जाए सिर्फ़ क़बूल,बस इतनी है चाहत

हो जाए ग़र मेरी तरफ़,नज़रें उनकी इनायत
फिर ना हो शिकवा कोई,या कोई शिकायत
नाज़ुक ये दिल है मेरा,रूह-ए-आशिक़ बेक़रार
इकरार-ए-मोहब्बत हो,चाहे हो जाए वो इनकार

 


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