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खुशियों का न पेड़ होता है

मन भरसक प्रयत्न करता है कि

वह हर परिस्थिति में खुश रहे लेकिन

ऐसा मन का आखिरकार

फलीभूत हो कहां पाता है

मन के ही किसी कोने में

खुशी का बीज कहीं गहरे

दबकर रह जाता है

उसकी कोपल फूटने को

होती है कि

एक तेज आंधी आती है और

उसको जड़ समेत अपने साथ

बहाकर ले जाती है

खुशियों का न पेड़ होता है

न ही उस पर किसी

खुशी के फूल के खिलने की

आशा ही कभी लहराती है।