in

खुद का साया भी एक अजनबी सा ही

यह दुनिया

एक अजनबी जगह मेरे लिए तो

यहां की हर चीज मुझे अजीब लगती है और

विस्मित करती है

मुझे यह एक अजनबियों की बस्ती

लगती है

यहां मुझे कोई अपना नहीं लगता

कोई मेरे दिल को छूकर मेरे पास से नहीं

गुजरता

कोई मेरे प्यार की गहराई को नहीं समझता

जिसे देखो वह अपने कार्यों में ही

व्यस्त है

मेरी तरफ देखने की किसी को फुरसत नहीं

यह दुनिया एक कब्रिस्तान है

बिना दिल की

बिना प्यार की

बिना मुस्कुराहटों की

यहां के बाशिंदे सब काठ के पुतले हैं

इनके दिलों को मैंने कभी धड़कते नहीं देखा

इनके लबों पर मैंने कभी मुस्कुराहटों के जाल नहीं देखे

इनसे कभी आंख मिली तो

न मोहब्बत हुई और न ही अश्रु की

कोई धारा बही

मुझे तो अब खुद से भी डर सा लगने

लगा है और

खुद का साया भी एक अजनबी

सा ही प्रतीत होने लगा है।