खामोशी


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खामोशी भी

एक आवाज है

एक नई जिंदगी का आगाज है

जब यह सुनाई देने लगती है तो

बाहर का शोर हो जाता है शून्य और

अंदर की लहरें लेने लगती हैं हिलोरे

खुद का खामोश होना और

माहौल का खामोश होना

कितना खूबसूरत एक अहसास है

न जाने कितनी सारी

आवाजें अनसुनी सी जो

दब गई थी बेमकसद की

चीख पुकारों में

वह अब सुनाई पड़ती हैं

कायनात का राग

उसके चरम यौवन पे

पूरे सोलह श्रृंगार के साथ

अपने ही रंगों में रंगा

कानों के पदों तक

पहुंचता है

उसमें शहद का मीठा रस

घोलता है

दरवाजे की खड़खड़ाहट

सुनती है

पत्तों की चरमराहट

हवाओं की सरसराहट

नर्म नर्म सांसों की गरम गरम सुगबुगाहट

अपने दबे मन की घबराहट

और कहीं फिर

अपनी ही खामोश आवाज की

बुदबुदाहट भी तो सुनती है।


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