कुदरत के नियम अजीब हैं


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कई बार सोचती हूं कि

एक फूल फूल क्यों होता है

एक पत्ता पत्ता क्यों होता है

एक कांटा कांटा ही क्यों होता है

यह सब एक संग होते हुए भी

एक दूसरे से कितने अलग हैं

कभी एक दूसरे को अपना भी नहीं पाते 

एक दूसरे को अपना रंग रूप उधार स्वरूप भी नहीं दे पाते

फूल मुरझाकर जमीन पर गिर जाये तो 

उसे हाथ आगे बढ़ाकर

उठा भी नहीं पाते

सबकी जीवन यात्रा

एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न है

फूल महकते हैं और हर किसी को महकाते हैं

कोमलता इनका सर्वोच्च गुण है

पत्ते हरे होते हैं

पतझड़ में पर पीले पड़कर

झड़ जाते हैं

अपने यौवन के चरम पर

होते हैं तो

सूरज की अग्नि पाकर

एक दीपक से जलते हुए

नजर आते हैं

कांटे कठोर होते हैं

जो इनके करीब जाये

उसे चुभ जाते हैं

किसी का दर्द नहीं बांटते अपितु

सबको चोट पहुंचाते हैं

कुदरत के नियम भी अजीब हैं

कहीं पर करिश्मा तो

कहीं पर कहर बरसाते हैं।


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