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एक मजदूर का जीवन होता बहुत कठिन: डॉ. मीनल द्वारा रचित कविता

एक मजदूर का जीवन होता
बहुत कठिन
दिन भर तोड़ता अपनी कमर
तब कहीं जाकर मिलता भोजन और
पीने के लिए ताजा निर्मल जल
ऐशो आराम तो होते उसकी
कल्पना से परे की बात
जमीन के कड़े बिछौने पर
लेटकर ही बितानी होती है उसे अपनी हर रात
दिन उगते ही निकलना होता है काम पर सांझ ढलने पर लौट आना होता है
अपने रहने के किसी ठिकाने पर
घर के नाम पर सड़क किनारे सोना भी हो सकती है उसकी नियति
सुबह से शाम, शाम से रात,
रात से होगी अगली सुबह या नहीं
इसकी नहीं कोई गारंटी
समय से अधिक तेज भागना है
नहीं तो रुक जायेगा समय
उसका नियत समय आने से पहले ही।