दिल से जुड़ा हो जो
दिल का रिश्ता तो
उसकी हूक जब तब उठती रहती है
यादों के बियाबान जंगल में
एक कांच का गिलास सा
कहीं चटकता है
दिल के किसी कोने में रखी
रिश्तों की लकड़ी की मेज पर
न कोई आवाज होती है
न वह टुकड़ा टुकड़ा बिखरता है
न वह जार जार रोता है
वह तो कहीं खामोशी से
अपनी इस उपलब्धि पर
बेतहाशा मुस्कुराता है
टूटा हुआ था जो टुकड़ा टुकड़ा
वह जुड़ जाता है
साबुत हो जाता है
जिंदा हो जाता है
एक नई जिंदगी की शुरुआत
सी नई श्वास कहीं खुद में भरता है
खुद को ही जैसे कहीं पाते हुए।