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आकाशदीप: अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता

ज्योति से जगमग सितारा आसमां का लाड़ला
प्रेम और उत्साह से लबरेज कंदील बन उपर अड़ा,
खुशियों का संसार रच प्रेमोत्सव का बिंब बड़ा
प्रतीक हर्षोल्लास का आकाशदीप गर्वित खड़ा।

कोमल मन का प्रतिबिंब बन उन्मुक्त प्रवात में डोलता
रंग भर सतरंगी अवयव आनंद तत्व उर डोलता,
चितचोर बन प्रहरी निशा का प्रणय – रस में घुलता
उमंग और उल्लास का मधुमास बन पर खोलता।

कृति अमोल आकाशदीप बन कृत्य चितवन मोहता
अनगिनत प्रारूप में बस आनंद अमृत घोलता,
संग दीपों का समाहित आवरण सम्मोहन भरा
शुभ समाहित उर में और खुशियों से दामन डोलता।

झुमकर उठती निगाहें नभ-निलांबर चुमता
कर वरण धरा का फिर रंगीन आभा उड़ेलता,
लाल, नीली, पीली और धानी छंटा अद्भुत सदा
अंतर्मन पर छाप छोड़ आकाशदीप मन मोहता।

है सदा फबता प्रदीप संग रंगरेज बन विस्मित खड़ा
है अधूरा बिन मेरे सब दीप, तोरण अक्षों की भाषा,
रूप रंग बदला हमेशा सुगढ़ हांथों का भी नियंत्रण
पर वही सम्मोहन समाहित आकाशदीप मैं सबकी आशा।