दिल में जगी रहती है इक उमंग
कोई न हो चाहे इस वक्त संग
प्रेम अपना है सागर सा गहरा
उठती उंमगों की तरंग ही तरंग
कुछ सुन्दर पंक्तियाँ क्या पढ़ ली
यूँ लगता जी ली इन विचारों के संग
बुजुर्ग पिता के ठहाके जब जब सुना
Umang: A poem by Bandana
लगा शिखर से कोई झरना है बहा।
तमन्ना जब पूरी न होती
हौसला रख, कहता उंमग
तू हकदार हैं, बृहत खुशी की
उल्लास को भेज देता जी बहलाने को
जिन्दगी के कई रंग पहचानने को
गम को पास फटकने न देने को मटमैले आकाश को स्वच्छ नीला कर देने को
धरती को प्रेम के पुष्पों से सुसज्जित कर
उमंगों की फुहारों से नम रखते हुए
इस जिन्दगी में विचरते रहे अपनी आयु तक।