फूलों के मीठे रसपान की मिठास लिए
विचित्र रंगों का लिबास ओढ़े
अपने रास्ते में खुशबु बिखेरे
मैं ही हूँ इस दुनिया को बनाये
मेरे खूबसूरत नाज़ुक़ पंखों पर है सृष्टि समाई
पूछो कैसे? बूझो कैसे?
परागण ही धर्म और कर्म हैं मेरे
जिससे उत्पन्न हों फूल, पत्ते, पेड़ और पौधे
इन पर रहते पक्षी सुनहरे
इन पर निर्भर पशु हमारे
छोटे पशु बनते बड़ों का आहार
और सम्पूर्ण होता खाद्य जाल
निर्दयी मानव न जानता मेरा हाल
कठोर मनुष्य न करते मेरा ख्याल
मेरे खूबसूरत नाज़ुक़ पंखों पर है सृष्टि समाई
विनती करती हूँ मैं आज
न पकड़ो, न ठेस पहुंचाओ मुझे
अपने बच्चों का मित्र बनाओ मुझे
प्यार से रिश्ता जोड़ो मुझसे
पूछो क्यों? बूझो क्यों?
क्यूंकि……
मेरे खूबसूरत नाज़ुक़ पंखों पर है सृष्टि समाई