कुंठित मन की कुंठा मन में कूट-कूट कुम्ह्लाती है.
प्राण प्रिये प्रियवर की याद..रात दिन सताती है..
क्षण भर की भी दूरी जो, मन को मेरे स्पर्श करे.
हरी – भरी धरती ये मन की, बंजर सी हो जाती है..
उन्मोदित उल्लेखन तेरा, सारी उमर मै करता हूं.
पुलकित पुष्प की पुष्पसुगंधा, जीवन अर्पित करता हूं..
जीवनरुपी धारा मे सहज-सरल बह चलता हूं…
संवेदन संपूर्ण संगिनी, तुम्हे समर्पित करता हूं…
कण-कण मे कंठस्त हुई तुम, कमल-कुमुदनी कार्यसंगिनी.
करुणामयी ये काया तेरी, बसी हृदय में हृदयरागिनी..
मंत्रमुग्ध, मदमस्त ये मौसम मन-मोहित कर लेता है..
मधुबेला मे मधुर मिलन, अगर तेरा हो मनमोहिनी…
विचारों के विश्लेषण में, सिर्फ तेरा ही व्याख्यान रहे..
धरा-गगन, एकांत इस मन में केवल तेरा ध्यान रहे…
प्रियतमा प्यारी प्रेम प्रतिज्ञा प्रियवर की याद रूलाती है…
कौतूहल कोलाहल में भी तन्हा सी कर जाती है…
विषम विदाई की घड़ी, निकट मेरे जब आती है..
कुंठित मन की कुंठा मन में कूट-कूट कुम्हलाती है..
प्राण प्रिये प्रियवर की याद..रात दिन सताती है।